ग्रंथ समीक्षा
नाड़ीग्रंथ भविष्य चौंका देनेवाला चमत्कार
" नाड़ीग्रंथ भविष्य - नास्त्रादेमस से भी अदभूत - चौंका देनेवाला चमत्कार –" पुस्तक का नया संस्करण विंग कमांडर शशिकांत ओक द्वारा बहुत सारी ताज़ा जानकारी की लाता है। भारत और दुनिया के सभी भागों के नाड़ीग्रंथ प्रेमियों के अनुभवों को ग्रंथरूप में प्रस्तूत करता है।
लेखक निवृत्त
विंग कमांडर शशिकांत ओक द्वारा वायु सेना
वर्दी के अपने दिनों के समय से लेकर सेवानिवृत्ति के बाद
18 से अधिक वर्षों के गहरे अध्ययन
का परिणाम यह ग्रंथ है। उनका कुल समर्पण नाड़ीग्रंथ महर्षियों की जनसेवा पर केंद्रित है। साथ साथ उन्होंने अनेक नाड़ीकेन्द्रों में महर्षियोंकी छवि खराब करने का जो काम रहा हैं उनके लिए सक्ती से
ठीक करने का प्रयास भी किया है।
लेखकने नाड़ीग्रंथ भविष्य के सभी पहलुओं को अध्ययन किया है। एक अविश्वासी के रूप में, सभी संदेहों को दूर करने के बाद उन्होंने कलम हाथ में
ले ली तथा अनेक मान्यवर गैर विश्वासियों के साथ वार्तालाप करने से वे डरे नहीं। फिर भी विनम्रतापूर्वक वे कहते हैं की वह ज्योतिष के सामान्य सुत्रों से, वे अभी भी अपरिचित
है।
अपने संदर्भ में घटित अनेक भविष्यवाणी शब्दशः कैसे साबित हो गई उसके अनेक उदाहरण उन्होंने ग्रंथ में पाठक के सामने प्रस्तूत किए है। होशियारपुर के एक केंद्र में विभूति का अवतरण हो, जालंधर के केंद्र में सफेद कागज़ से मिलनेवाला चमत्कारी भृगुफल हो, योगी रामसुरत कुमार की भविष्यवाणी हो, रमणी गुरुजी के बोल हो या 'अन्ना' याने डॉ. ओम उलगनाथ द्वारा अनेक अचंभित करनेवाले कथन हो, ऐसे ऐसे नाड़ीग्रंथ के अविश्वसनीय पहलुओंपर लिखे कथन वाचकों की उत्कंठा प्रत्येक प्रकरण के साथ बढ़ाते हैं।
इसमें संदेह नही की
अनेक नाड़ी ग्रंथ प्रेमींयों के आत्मकथन से महर्षों द्वारा उन्हे मिले मार्गदर्शन
के कारण उनके जीवन में मिले नये मोड़ कैसे कारिगर सिद्ध हुए आदि के वर्णन नाड़ी ग्रंथोंको
अवलोकन करने की उत्सुकता जातकों के मन में अवश्य उत्पन्न करेंगे। अपने संदर्भ में घटित अनेक भविष्यवाणी शब्दशः कैसे साबित हो गई उसके अनेक उदाहरण उन्होंने ग्रंथ में पाठक के सामने प्रस्तूत किए है। होशियारपुर के एक केंद्र में विभूति का अवतरण हो, जालंधर के केंद्र में सफेद कागज़ से मिलनेवाला चमत्कारी भृगुफल हो, योगी रामसुरत कुमार की भविष्यवाणी हो, रमणी गुरुजी के बोल हो या 'अन्ना' याने डॉ. ओम उलगनाथ द्वारा अनेक अचंभित करनेवाले कथन हो, ऐसे ऐसे नाड़ीग्रंथ के अविश्वसनीय पहलुओंपर लिखे कथन वाचकों की उत्कंठा प्रत्येक प्रकरण के साथ बढ़ाते हैं।
780 साल पुर्व महाराष्ट्र में जन्मे संत ज्ञानेश्वर के संदर्भ के ताड़पत्र की खोज तथा उनकी नाड़ी में कथिक भाष्यपर किया शोधकार्य लेखक के नाड़ी ग्रंथ के प्रति गहरी आस्था का परिचय देता है।
ग्रुप कैप्टन राकेश नंदा पूरे पुस्तक पर सितारा व्यक्तित्व में छाए है। उनके द्वारा सर्व धर्म मंदिर का निर्माण, उसमें अगस्त्यमहर्षि की प्रतिमा स्थापित कराना, मीनाक्षी नाड़ीग्रंथ के प्रोफेसर ANK स्वामीजी का आशीर्वाद, उनकी अटूट भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक हैं। ब्रह्मसूक्ष्म नाड़ीग्रंथ, जिसमें उनके माता-पिता के विवाह की 50 वी सालगिरह का उल्लेख आदि उनके साथ घटित आश्चर्यजनक अनुभव कथन वाचक को नाड़ीग्रंथों की पहचान कराने के लिए जागृत करता है।
नाड़ीग्रंथ चाहनेवाले जरूरतमंदों को तत्परता से मदद मिले इसलिए साथ रखे 5 मोबाइल फोन की घंटी हमेशा टनटनाती रहती है। हाथ में चार और पांचवा गले में लेके खड़े व्यंगचित्र से, उनके व्यक्तित्व को बाखुबी
प्रस्तूत किया गया है। नाड़ीग्रंथ सेंटर के मालिकों द्वारा मूल ताड़पत्र बिना मांगे उन्हें दिया जाना, नाड़ीवाचकों का नाड़ीग्रंथ प्रेमियों के प्रति
बदलता दृष्टिकोण दर्शाता है।
कार्टूनों को मजाकिया ढंग से प्रस्तूत कर लेखक कहते हैं, तर्कवादी और नास्तिक लोग ज्योतिष शास्त्र को पंचिंग बैग के रूप में कभी भी प्रताडित करने के लिए उपयुक्त मानते है। मीडियावाले उनके विचारों को तुरंत प्रकाशित करने को सदैव तैयार रहते है। परंतु, फलज्योतिषी चुनौती देने वालों की कर्कश आवाज को बंद करने के लिए नाड़ीग्रंथ की मदद लेते है। जैसे एक बहू अपने पतिको कुशलता से वश कर सांस की चिल्लाचिल्लीपर नियंत्रित करती है।
कार्टूनों को मजाकिया ढंग से प्रस्तूत कर लेखक कहते हैं, तर्कवादी और नास्तिक लोग ज्योतिष शास्त्र को पंचिंग बैग के रूप में कभी भी प्रताडित करने के लिए उपयुक्त मानते है। मीडियावाले उनके विचारों को तुरंत प्रकाशित करने को सदैव तैयार रहते है। परंतु, फलज्योतिषी चुनौती देने वालों की कर्कश आवाज को बंद करने के लिए नाड़ीग्रंथ की मदद लेते है। जैसे एक बहू अपने पतिको कुशलता से वश कर सांस की चिल्लाचिल्लीपर नियंत्रित करती है।
एक अध्याय में, प्राचार्य अद्वयानंद गळतगे द्वारा लिखे पाँच पत्र में नास्तिक खगोलशास्त्री डॉ. जयंत नार्लीकर के लापरवाह दृष्टिकोण को
अधोरेखित करते है। उनके विपरीत सकारात्मक सोच
रखनेवाले, सुपरकंप्युटर के
निर्माता तथा विख्यात वैज्ञानिक पद्मश्री
डॉ. विजय भटकर नाड़ीग्रंथ के वैज्ञानिक अध्ययन के लिए आगे आने के लिए तत्पर है। पुस्तक के पीछे के कवर पर उनके विचार
प्रस्तूत
हैं।
झेक रिपब्लिक की राजधानी प्राग में आयोजित प्रथम अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन पर रिपोर्ट दिलचस्प है। पश्चिमी लोग नाड़ी ग्रंथों के प्रति कैसे सम्मान और जिज्ञासा के साथ देखते इसपर प्रकाश डलता है।
ग्रंथ के पढ़ने के बाद शायद ही कोई पाठक हो जो नाड़ीग्रंथ का अवलोकन न करना चाहता हो। जिस तरह का प्रभाव दिलचस्प तरीके से नाड़ी ग्रंथों का विषय प्रस्तुत किया गया है उसे लगता है की जल्द से जल्द हरसंभव मौका आनेपर अपना नाड़ीग्रंथ पढ़ने जरूर जाएगा।
पूरे भारत में फैले 220 से अधिक नाड़ीग्रंथ केंद्रों के पते से इच्छुक पाठक अपने समीप के शहर या गांव से उपयुक्त पतों का चुनाव कर सकते हैं!
---------------------
पब्लिशर – डायमंड बुक्स, X-30 ओखला इंडस्ट्रियन इस्टेट
फेज़ II, नई दिल्ली. 110020.
कीमत: Rs.150/- पन्ने : 276. Website: www.dpb.in ISBN: 978-93-5083-320-9
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें