बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

"सब कुछ लिखा है!"

"सब कुछ लिखा है!"

ग्रुप कैप्टन राकेश नंदा अपनी ब्रह्म सुक्ष्म नाड़ी पट्टी ढूँढने के प्रथमानुभव का उदाहरण देकर दृढ़ विश्वास से कहते है - नाड़ी ग्रंथ का एक एक पत्ता बताता है - यहां "सब कुछ लिखा है!"


"सर, प्रणाम, मैं पुणे के रास्ते पर फ्लाईट में हूँ।" विंग कमांडर (तब) राकेश नंदा, मेरे सबसे अच्छे दोस्त का 
यकायक सुबह फोन आया। सामान्य रूप से उनकी आवाज की गूंज़ नहीं थी। इसलिए मैं पूछा,सब कुछ ठीक है? उन्होंने कहा, "सॉरी सर, रेणु - मेरी पत्नीने उसकी माँ को खो दिया है और इसलिए हम पुणे के रास्ते पर विमानसे आ रहे  हैं। मैं पहुंचने पर संपर्क करूंगा।"
10:30 सुबह बजे
के आसपास, मैं तैयार हो रहा था, राकेश का फिर फोन आया कि वह अपने ससुराल में अपनी पत्नी को पहुंचाकर वापसी के टिकट बुकिंग के लिए पुणे रेलवे स्टेशन पर पहुंच गया है। राकेश ने पूछा, "क्या हम कहीं मिल सकते हैं?"उस दिन के कार्यक्रम तथा घर की परिस्थितीपर विचार कर, मैंने कहा, "आप कोरेगांव नाड़ीकेंद्र पहुंच सकते हो क्या ?” क्योंकि हमारे विचार विनिमय का केंद्र बिंदु नाड़ी ग्रंथ ही था। सोचा मेरे लिए भी आधे रास्तेपर पहुंचने में आसानी रहेगी और उन्हे भी। राकेशने कहा, "समस्या नहीं सर, मैं कोरेगांव पार्क स्थित नाड़ी ग्रंथ सेंटर में आप क इंतजार करूंगा।" उन्होंने बिना हिचक के उत्तर दिया।
जब तक मैं नाड़ी ग्रंथ केंद्र में पहुँच
ा, राकेश पहले से ही चीफ नाड़ी ग्रंथ ज्योतिषी श्री शिवषण्मुगम को अपने अंगूठे का निशान दे बैठे थे कहने लगे, "सर चीफ नाडी वाचक शिवाने मुझे बताया कि उनके पास ब्रह्मा सुक्ष्म नाड़ी के पैकेट उपलब्ध है। मैंने अब तक ब्रह्मसूक्ष्म नाड़ी का अवलोकन नही किया है। सोचा आज कर लूं। ब्रह्मा महर्षि द्वारा लिखित नाडी के बारे में मैंने आपसे बहुत कुछ सुना है, लेकिन अपना खुद का उन भविष्यवाणियों की जांच करने का मौका नहीं मिला। इसलिए, सर बस जिज्ञासा से, मेरे अंगूठे का निशान दिया है सुनकर मैं भी खुश हुआ।
इस बीच शिवा एक तलवार के आकार का पैकेट अपने दोनों हाथों में पकड़े आए। इतना लंबा ताड़ का पत्र  अप्रत्याशित था राकेश जी इतनी लंबाई के ताड़ के पत्तों को देखकर हैरान रह गए। (बाद में हमने ताड़पत्र को नापा, तो लगभग 30 इंच का पाया) बारीकी से देख कर लगा कि पत्र पर तीन स्तंभों में लिखा था पीछे की ओर कुछ लाइने एक छोर से दूसरे तक बिना किसी रुकावट से लिखी थी

 स्वामी!, हम खोज शुरू करते हैं! शिवा अपने भारी तमिल लहजे में कहा, हमें पढ़ने के अंदर के कमरे के लिए स्थानांतरित करने के लिए संकेत किया। सबसे पहले, लगभग 10 से 15 पत्ते में राकेश की जानकारी के साथ मेल नहीं थे इस कारण खारिज किएए। धीरे - धीरे, एक पत्ता पढ़ा जाने लगा। एक पट्टी में हर उत्तर राकेश सकारात्मक देने से विवरण की पुष्टि हो गईउनका नाम, माता-पिता, पत्नी का नाम, अंत में उनका जन्म दिनांक आदी शत प्रतिशत सही होनेपर, हम जान गए कि राकेश की ताड़त्री मिल गई है। फिर हम उनके बाहरवाले कमरे में आकर बैठ गए। तब तक शिवा हमारे सामने टेबुल पर उक्त ताड़पत्री को सामने रखकर एक नोटबुक में उसमे लिखा कथन अपने हाथ से लिखने बैठे। ताड़पत्ती पर लिखे कूट लिपी को आधुनिक तमिल लिपि में समझकर उसकी नकल उतारना एक महत्वपुर्ण अंग है। आज कल के ग्राहक तमिल भाषा में लिखे कथन को तमिल न आने के कारण जादा अहमियत नही देते, समय की कमी, तथा नाड़ी केंद्रों में भीड के कारण कई केद्र में नोटबुक में लिखकर देने का प्रघात आजकल थोडा कम हो गया है। फिर भी शिवा जैसे नाड़ी वाचक आजभी नोटबुक लिखने की प्रथा को जारी रखे हुए है। शिवा के बगल में बैठे, हम अपने भीतर बातचीत शुरू कशिवा उनके ताड़पत्र का लेखन किए जा रहे थे, और हम भी यह देख रहे थे। एक जगह नोटबुक लिखना छोड़ हमारी तरफ ताडपत्री के कुछ अंश दिखाकर बोले, ये देखो, आपका नाम - 'राकेश' (स्वयं), 'सुरेंद्र' (पिता), 'चंचल' जैसे नामों के प्रत्येक कैसे (माँ), और 'रेणु' (पत्नी) के नाम प्राचीन तमिल लिपि में लिखे पाए जाते हैं। हथेली पर त्री रखकर हमने निरीक्षण किया तथा पाया की अक्षर कैसे दिकाई देते हैं। इसके बाद फिर उनका लेखन जारी हुआ, और हम हमारी चर्चा
फिर एक बार शिव अचानक एक जगह पर लेखन रोक कर राकेश की ओर देख कर बोले, "स्वामी, आपके माता-पिता, के संदर्भ में एक अस्पष्ट उल्लेख जो मेरी समझ में नहीं आ रहा। आप इस पर कुछ प्रकाश ड़ाल सकते हैं?" शिव कहने लगे कि '50 संख्या का कुछ महत्त्व है?, यह लिखा है " (जो जातक इस पत्ती से परामर्श करने जिस दिन आ गया है) उसके माता पिता के लिए बहुत खास दिन है।" जो वह समझ नहीं पा रहा था राकेश लगभग कूद कर कहने लगे, "हाँ! जी हाँ! दरअसल आज मेरे माता - पिता के लिए 50 विवाह की सालगिरह क दिन होता है। हम राजस्थान में अपने गृहनगर जोधपुर में शानदार तरीके से इसे मनाने के लिए तैयार थे, लेकिन मेरी सास के दुर्भाग्यपूर्ण निधन के कारण, हमने समारोह रद्द कर दिया है और पुणे के लिए निकल पडे
मेरे माता - पिता को भी उड़ान द्वारा इस दोपहर तक पुणे पहुँचने चाहिए, अंतिम संस्कार के लिए । लेकिन तुम कैसे जानते हो? यह वहाँ लिखा है? "
शिव के चेहरे पे मुस्कुराहट नहीं छिपी, सिर हिलाहिला कर कहा, " स्वामी, सब कुछ पहलेसे लिखा है, सब कुछ लिखा है!"
उनका लेखन खत्म हो गया था, टेप रिकॉर्ड तैयार था। नोटबुक और कैसेट सौंपते, शिवने राकेश के हाथ में मूल ताड़ का पत्ता देते हुए कहा, लो राकेशजी, नाड़ी ग्रंथ केंद्र से एक विशेष टोकन के रूप में यह ताड़पत्र भी आप स्वीकार कर लो।  राकेश ने एक महान उपलब्धी हात में लेकर भेंटवस्तु को श्रद्धा पुर्वक स्वीकारा। कहा, आज़ मैं धन्य हो गया। हे महर्षींयों, जिस दयार्द्र दृष्टीसे मेरे जैसे सामान्य व्यक्ति का ख्याल करते हो, सदैव धन्य भागी रहूंगा आपका तथा आपकी इस अनमोल भेंट का।
उस दिन की जब याद आती है तो मन में अनेक प्रश्न उठते हैं –
कि एक पत्ता राकेश के लिए इंतजार कर रहा था की वे उसे पढने आएंगे। जरूर आएंगे, वो भी उसी दिन जिस दिन उनके मातापिता के विवाह की 50वी बरसगांठ हो! उस इतज़ार को पुरा करने के लिए राकेश को हवाईजहाज का तात्काल सफर करना पडा। अपनी सांस का देहान्त न होता तो वे पुणे तब नही आते। मेरा उनसे वार्तालाप में उसी नाडी केंद्र में बुलाना महज एक आपसी सुविधा का भाग था। राकेश जी ताड़पट्टी पढने की प्रेरणा कैसे हुई ?खुद एक देढ घंटे के समय में पट्टी मिलकर नोटबुक बनकर टेप रिकॉर्ड भी हो गया तथा उस ताडपत्र को भेंट स्वरूप दिया गया सब बाते अशक्यप्राय लगती है। ये सब पहले से ही तय था? महर्षींयों को लिखते समय इन सभी बातों की जानकारी थी?
कई लोगों को एलिस इन वंडरलैंड की काल्पनिक कथाओं में जो पढ़ने के लिए मिलता है, उससे भी अदभूत, बहुत कुछ वास्तव में कुछ अनुभव किया जा सकता है, जो कि उससे भी अधिक अविश्वसनीय और सच भी है! यह मेरा सौभाग्य था की उस सम्मान और गर्व के विशेष अवसर पर मैं पुणे के नाडीकेंद्र में घटना का साक्षी बनकर उपस्थित था।
ब्रह्म सूक्ष्मनाड़ी ग्रंथ ताड़ के पत्ते पर लिखे अदभूत कथन के अनेक किस्से हैं। एक बार फिरोज मिस्त्री को अचानक पट्टी पढने की इच्छा हुई। उनकी पट्टी मे मेरा नाम आया और कहा गया की उसके किए भी एक पट्टी तैयार है। ऐसे करते करते 7-8 लोगों के ब्रह्मसुक्ष्म ताड़पट्टी में बारबार निर्देश आया की एक पौर्णिमा को आप सभी तिरुवन्नमलाई के पर्बत की परिक्रमा करोगे और बाद में एक व्यक्ति से मिलोगे, जो आपका इंतजार कर रहे हैं। क्या हम सब वहां गए? उस व्यक्ति को ढूंढ पाए? आदी रोचक कथाएं फिर अगले ससंस्करण में पढें ...
नाड़ी भविष्य के अनुसंधान के क्षेत्र में काम करने के लिए यही है वह शिव ने परंपराओं के विपरीत, राकेश को तलवार के आकार का ताड़ का पत्ता उपहार में दिया था,
ताड़ का पत्ता तस्वीरें जो लोग यह देखने के लिए उत्सुक हैं के लाभ के लिए
, संलग्न।
 एक कहावत है कि सभी मनुष्य के भाग्य की बिसात से बंधे हैं की पुष्टि करता है। क्या यह बात सही नहीं है?
....
चंचल राकेश (माँ), रेणु (पत्नी) और सुरेंद्र (पिता) के नाम पहली लाईन में दिखाई देता है।



3 तीसरी पंक्ति में माता पिताके विवाह की 50 वी बरसी का संदर्भ


प्रस्तूति - विंग कमांडर शशिकांत ओक फोटो - हैयोहैयैयो




शनिवार, 31 जनवरी 2015

ग्रंथ समीक्षा नाड़ीग्रंथ भविष्य चौंका देनेवाला चमत्कार

ग्रंथ समीक्षा नाड़ीग्रंथ भविष्य चौंका देनेवाला चमत्कार



ग्रंथ समीक्षा

नाड़ीग्रंथ भविष्य चौंका देनेवाला चमत्कार





" नाड़ीग्रंथ भविष्य - नास्त्रादेमस से भी अदभूत - चौंका देनेवालाचमत्कार पुस्तक का नया संस्करण विंग कमांडर शशिकांत ओक द्वारा बहुत सारी ताज़ा जानकारी की लाता है। भारत और दुनिया के सभी भागों के नाड़ीग्रंथ प्रेमियों के अनुभवों को ग्रंथरूप में प्रस्तूत करता है।
लेखक निवृत्त विंग कमांडर शशिकांत ओक द्वारा वायु सेना वर्दी के अपने दिनों के समय से लेकर सेवानिवृत्ति के बाद 18 से अधिक वर्षों के गहरे अध्ययन का परिणाम यह ग्रंथ है उनका कुल समर्पण नाड़ीग्रंथ महर्षियों की जनसेवा पर केंद्रित है साथ साथ उन्होंने अनेक नाड़ीकेन्द्रों में महर्षियोंकी छवि खराब करने का जो काम रहा हैं उनके लिए सक्ती से ठीक करने का प्रयास भी किया है।
लेखकने नाड़ीग्रंथ भविष्य के सभी पहलुओं को अध्ययन किया है। एकअविश्वासी के रूप मेंसभी संदेहों को दूर करने के बाद उन्होंने कलम हाथ में ले ली तथा अनेक मान्यवर गैर विश्वासियों के साथ वार्तालाप करने से वे डरे नहीं फिर भी विनम्रतापूर्वक वे कहते हैं की वह ज्योतिष के सामान्य सुत्रों से, वे अभी भी अपरिचित है। 
अपने 
संदर्भ में घटित अनेक भविष्यवाणी शब्दशः कैसे साबित हो गईउसके अनेक उदाहरण उन्होंने ग्रंथ में पाठक के सामने प्रस्तूत किए है। होशियारपुर के एक केंद्र में विभूति का अवतरण हो, जालंधर के केंद्र में सफेद कागज़ से मिलनेवाला चमत्कारी भृगुफल हो, योगी रामसुरतकुमार की भविष्यवाणी हो, रमणी गुरुजी के बोल हो या 'अन्ना याने डॉ. ओम उलगनाथ द्वारा अनेक अचंभित करनेवाले कथन हो, ऐसे ऐसेनाड़ीग्रंथ के अविश्वसनीय पहलुओंपर लिखे कथन वाचकों की उत्कंठा प्रत्येक प्रकरण के साथ बढ़ाते हैं। 
इसमें संदेह नही की अनेक नाड़ी ग्रंथ प्रेमींयों के आत्मकथन से महर्षों द्वारा उन्हे मिले मार्गदर्शन के कारण उनके जीवन में मिले नये मोड़ कैसे कारिगर सिद्ध हुए आदि के वर्णन नाड़ी ग्रंथोंको अवलोकन करने की उत्सुकता जातकों के मन में अवश्य उत्पन्न करेंगे। 
780 साल
 पुर्व महाराष्ट्र में जन्मे संत ज्ञानेश्वर के संदर्भ के ताड़पत्र कीखोज तथा उनकी नाड़ी में कथिक भाष्यपर किया शोधकार्य लेखक के नाड़ी ग्रंथ के प्रति गहरी आस्था का परिचय देता है।


ग्रुप कैप्टन राकेश नंदा पूरे
 पुस्तक पर सितारा व्यक्तित्व में छाए हैउनके द्वारा सर्व धर्म मंदिर का निर्माण, उसमें  अगस्त्यमहर्षि की प्रतिमा स्थापित कराना, मीनाक्षी नाड़ीग्रंथ के प्रोफेसर ANK स्वामीजी का आशीर्वाद, की अटूट भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक हैं। ब्रह्मसूक्ष्मनाड़ीग्रंथजिसमें उके माता-पिता के  विवाह की 50 वी सालगिरह का उल्लेख आदि उनके साथ घटित आश्चर्यजनक अनुभव कथन वाचक को नाड़ीग्रंथों की पहचान कराने के लिए जागृत करता है।
नाड़ीग्रंथ चाहनेवाले जरूरतमंदों को तत्परता से मदद मिले इसलिए साथ रखे 5 मोबाइल फोन की घंटी हमेशा टनटनाती रहती है। हाथ में चार और पांचवा गले में लेके खड़े व्यंगचित्र से, उनके व्यक्तित्व को बाखुबी प्रस्तूत किया गया है। नाड़ीग्रंथ सेंटर के मालिकों द्वारा मूल ताड़पत्र बिना मांगे उन्हें दिया जाना, नाड़ीवाचकों का नाड़ीग्रंथ प्रेमियों के प्रति बदलता दृष्टिकोण दर्शाता है। 
कार्टूनों को
 मजाकिया ढंग से प्रस्तूत कर लेखक कहते हैंतर्कवादी और नास्तिक लोग ज्योतिष शास्त्र को पंचिंग बैग के रूप में कभी भी प्रताडित करने के लिए उपयुक्त मानते है। मीडियावाले उनके विचारों को तुरंत प्रकाशि करने को सदैव तैयार रहते है परंतु, फलज्योतिषी चुनौती देने वालों की कर्कश आवाज को बंद करने के लिए नाड़ीग्रंथ  की मदद लेते है। जैसे एक बहू अपने पतिको कुशलता से वश कर सांस कीचिल्लाचिल्लीपर नियंत्रित करती है।

एक अध्याय मेंप्राचार्य अद्वयानंद गळतगे द्वारा लिखे पाँच पत्र मेंनास्तिक खगोलशास्त्री डॉ. जयंत नार्लीकर के  लापरवाह दृष्टिकोण को अधोरेखित करते है। उनके विपरीत सकारात्मक सोच रखनेवाले, सुपरकंप्युटर के निर्माता तथा विख्यात वैज्ञानिक पद्मश्री डॉ. विजय भटकर नाड़ीग्रंथ के वैज्ञानिक अध्ययन के लिए आगे आने के लिएतत्पर है। पुस्तक के पीछे के कवर पर उनके विचार प्रस्तूत हैं

झेक रिपब्लिक की राजधानी प्राग में आयोजित प्रथम अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन पर रिपोर्ट दिलचस्प है पश्चिमी लोग नाड़ी ग्रंथों के प्रति कैसे सम्मान और जिज्ञासा के साथ देखते इसपर प्रकाश डलता है
ग्रंथ के पढ़ने के बाद शायद ही कोई पाठक हो जो नाड़ीग्रंथ का अवलोकन न करना चाहता हो। जिस तरह का प्रभाव दिलचस्प तरीके से नाड़ी ग्रंथों का विषय प्रस्तुत किया गया है उसे लगता है की जल्द से जल्द हरसंभव मौका आनेपर अपना नाड़ीग्रंथ पढ़ने जरूर जाएगा। 
 पूरे भारत में फैले 220 से अधिक नाड़ीग्रंथ केंद्रों के पते से इच्छुक पाठक अपने समीप के शहर या गांव से उपयुक्त पतों का चुना कर सकते हैं!
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पब्लिशर – डायमंड बुक्स, X-30 ओखला इंडस्ट्रियन इस्टेट फेज़ II, नई दिल्ली. 110020.

कीमत: Rs.150/- पन्ने : 276. Website: www.dpb.in  ISBN: 978-93-5083-320-9


शनिवार, 13 सितंबर 2014

नाड़ीग्रंथ और नाड़ीग्रंथ के विरोधक मुक़ाबला ए क़व्वाली!

नाड़ीग्रंथ और नाड़ीग्रंथ के विरोधक 
मुक़ाबला ए क़व्वाली!


 नाडीग्रंथ विषय पर अभी तक बहुत सारी बाते लिखी तथा बोली गई है। पिछले कुछ सालों से इंटरनेटपर इस विषय को अनेक लोगों ने पढा तथा सराहा। साथ-साथ नाडीग्रंथो को अपनी विचारधारा के विपरीत होने के कारण ऐसे अनेक व्यक्ती तथा संस्थाओंने नाडीग्रंथोंपर अपने विरोधी व्यक्तव्य जारी किए। इन विरोधकों को नाडीग्रंथों के सामने कैसी हार खानी पडी और उनके लेखनने जिस तरह से हताशा तथा अपराध बोध की झलक दिखाई देती है। ये बुध्दीजीवी लोग अपने को स्वयंसिध्द दार्शनिक समजते है। प्रचलित शास्त्र यानी फिजिक्स, लॉजिक और गणित के सिध्दांतो को सामने रखकर शास्त्र यानी फिजिक्स एक परिपूर्ण विचार है ऐसा मानकर नाडीग्रंथो में कथित चमत्कार का हो पाना बिल्कुल असंभव है ऐसी उनकी धारणाएं है। चलो अब देखते है ऎसे कुछ लोगों के शुरू.शुरू के विचार और उनमे धीरेधीरे आया परिवर्तन।
मराठी में उपक्रम.ऑर्ग (upkram.org) नाम से एक साईट है। सन 2008 में ऐसेही नेटपर बैठे बैठे मेरा ध्यान उपक्रम पर गए। 1996-97से महाराष्ट्र में अंधश्रध्दा निर्मुलन समिती नाम से एक तर्कशिल संस्था पिछहे कई साल से कार्यरत है। उसके सर्वेसर्वा तथा कार्याध्यक्ष डॉ. नरेंद्र दाभोलकर और खगोलविज्ञानतज्ञ तथा आंतरराष्ट्रीय ख्याती प्राप्त पदभुषण डॉ. जयंत नारळीकरने नाडीग्रंथ पर टिकाटिपण्णी की। नाडीग्रंथों के खोखलेपन को एक झुठा बताते हुए (मराठी में जिसे ‘थोतांड’ कहा जाता है) एक पुस्तक भी प्रकाशित कि है। उस प्रकाशित पुस्तक में नाडीग्रंथ पर लगाए गए लांझन तथा उन आरोपों पर मेरे द्वारा तथा प्रा. अद्वयानंद गळतगे द्वारा दिए गये सटिक उत्तरों से परेशान होकर बाद में नाडीग्रंथ पर भाष्य करना बंद कर दिया।

 नाडीग्रंथ के संदर्भ में जो टिपण्णी की थी उसपर भी समर्पक उत्तर दिए थे। बाद में उन्होंने भी अपना पल्लु छाककर नाडीग्रंथ या नाडीग्रंथो के चमत्कारी होनेपर आपत्ती करना बंद कर दिया। ऐसे व्यक्ती जिन्होंने नाडीग्रंथ विरोध में अपने विचार प्रकाशित किए गए हो ऐसे व्यक्तीने अपना पुरा पुस्तक उपक्रमपर प्रकाशित किया। उसका नाम है "ज्योतिषियों के पास जानेसे पूर्व"  (मराठीं में - ज्येतिषांच्याकडे जाण्यापुर्वी) उसमे ज्योतिषशास्त्र की निर्भत्सना करते हुए उसे शास्त्र का आधार नही तथा उसे एक शास्त्र कहना भी उचित नही। ऐसे कहा गया था। उस संदर्भ में नाडीग्रंथ पर विविध धागों बहुत कुछ लिखा गया है। तो उपक्रम पर उस व्यक्ती अर्थात घाटपांडेने जो लिखा उसे देखकर मैने उपक्रमपर नाडीग्रंथ के समर्थन में लिखना शुरू किया। शुरू मे मैने ये जरूर कहा था की घाटपांडे तथा उनके वरिष्ठ लेखक स्वर्गीय माधव रिसबुड द्वारा किए गए आरोपों का खंडन हुआ है। इसलिए हम इस बहस ने लेना नही चाहते। लेकिन किसी ने नाडीग्रंथ क्या है ऎसी विचारणा की तो उसपर उसे जरूर उत्तर मिलेगा। नाडीग्रंथों पर मेरे लेख प्रकाशित होने शुरू हो गए। उपक्रम एक समाजवादी धारा के उपर काम करनेवाले तथा चमत्कार के भंडाफोड करनेवाले, देवीदेवाताओं के श्रध्दाओं स्थानो का मज़ाक उडानेवाले, तथा ब्राम्हण समाज पर जोर से प्रहार करनेवाले लेखकों के लिए एक mप्रभावशाली विचारमंच है। उनकी कार्यप्रणाली में कोई भी उनकी विचारधारा के विपरीत लिखे तो उसके कुछ सदस्य इकठ्ठे होकर उस व्यक्तीव्दारा प्रस्तुत विषय को अलग-अलग तरह से प्रहारकर उसे भौचक्का कर देते है तथा बादमे वह व्यक्ती या लेखक अपने विचार या विषय प्रस्तुत करना छोड देते है। ऎसे कई उदाहरण देखने को मिलते है। उदाहरण के तौर पर इश आपटे, दुसरे है शरद हार्डीकर, तिसरे है सतीश रावले ................

उपक्रम एक गंभीर विचारमंच है उसपर हलके शब्दों मे छेडाखानी नही होती। इसी बीच मिसळपाव यानी मुंबई की चौपाटीपर मिलनेवाला एक बहुतही स्वादिष्ट व्यंजन ‘मिसळ’ यानी मिक्चर ‘पाव’ डबल रोटी ऎसे नाम से एक साईट का मै सदस्य बना और उसपर भी अनेक प्रतिक्रियाऎ आनी शुरू हुई। परंतु मिसळपाव वेबसाईटपर कुछ ऎसे व्यक्ती जो गंभीर होने का दावा करते है परंतु असल में वे भी नाडीग्रंथों की निंदा तथा कुच्छेष्टा करते है। ऎसे नाडीनिंदको को ठिकाने लगाने का काम महर्षीयों ने मुझे सोपा हुआ है। ऎसे उनके द्वारा कह गए कथन से मुझे और लिखने की प्रेरणा मिली। चलो देखते है नाडीग्रंथ के संदर्भ में नाडीग्रंथ विरोधों की बोलती कैसे बंद हो गयी है। धनंजय, रिकामटेकडा, निले, डार्क मॅटर, वसुली, राजेश घासकडवी छोटा डॉन, यनावाला, सहज़,अदिती, गगनविहरी रामपुरी, राघव, आत्मानुभव तथा अनेक लोगों की कुछ टिपणीयाँ औरे मेरे तथा हैयोहैयैयो द्वारा दिए गए उत्तर प्रस्तुत है। हिंदी में मेरी टिप्पनी पढे। उपक्रम दिवाली अंक २०१० १) २००८ में अंनिस द्वारा ज्येतिषों को कहा गया कि आप को हम २०० कुंडलियाँ देंगे उनमें १०० कुंडलियां विकलांगोंची होंगी। आपको उनमें से विकलांगों की कुंडलियां ढूंढनी है। उसपर महाराष्ट्र राज्य ज्योतिषपरिषद नें भाग न लेने की भुमिका जताई। नाडी ग्रंथोंपर ऐसे ही शोधकार्य आगे जा कर हो ऐसा मेंने सुझाव दिया। महाराष्ट्र ज्योतिष परिषदे'ची अभिनंदनीय कृती ! 904 वाचने प्रेषक चित्रगुप्त ने उसपर टिपनी करते कहा

आगे का मैटर मराठी में....  आगे फिर हिन्दी में है...

(बुध, 05/21/2008 - 10:27) महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिती, आयुका व पुणे विद्यापीठ यांच्या संयुक्त0 विद्यमाने फलज्योतिषाची कथित वैज्ञानिक चाचणी घेण्याच्या उपक्रमावर महाराष्ट्र ज्योतिष परिषदेने बहिष्कार टाकला. पुणे विद्यार्थीगृह येथे परिषदेच्या रविवारी झालेल्या एका बैठकीत हा निर्णय घेण्यात आला. या वेळी ज्येष्ठ ज्योतिषी श्री. श्री.श्री. भट, श्री. सिद्धेश्वेर मारटकर, श्री. ओक, डॉ. धुंडीराज पाठक आदी मान्यवर उपस्थित होते. या प्रसंगी श्री. भट म्हणाले, ``अंनिसचे कार्याध्यक्ष डॉ. नरेंद्र दाभोलकर यांनी लोकांचा विश्वा्स गमावला आहे. ही चाचणी म्हणजे लोकांची फसवणूक करण्याची त्यांची नवीन चाल आहे. या चाचणीत आम्ही सहभागी होणार नसून कोणत्याही ज्योतिषाने असली आव्हाने स्वीकारू नयेत.'' डॉ. पाठक म्हणाले, ``मुळात फलज्योतिष हे शास्त्र आहे, हे अंनिससमोर सिद्ध करण्याची गरजच काय ? ही मंडळी खोटारडी असून त्यांच्याकडून डॉ. जयंत नारळीकर यांच्या नावाचा वापर करून घेतला जात आहे. `फलज्योतिष हे शास्त्र नाही', हे अंनिसवाल्यांनी अगोदरच ठरवून टाकले आहे. या चाचणीचे खोटेनाटे निष्कर्ष जमा करून ते विधिमंडळात न्यायचे व वादग्रस्त अंधश्रद्धा निर्मूलन कायद्याचे कथित महत्त्व पटवून देऊन तो मंजूर करून घ्यायचा, हाच या चाचणीमागील मुख्य हेतू आहे. या कायद्यामुळे `ज्योतिष' या विषयावरच बंदी येणार असल्याने असल्या चाचण्यांना विरोध करण्यापेक्षा थेट या कायद्यालाच विरोध करणे ज्योतिषांच्या हिताचे ठरेल.'' ज्योतिषशास्त्राच्या अन्य एक विद्यार्थिनी मेधा करमरकर यांनीही या चाचणीवर आक्षेप घेत ``फलज्योतिष हे हिंदु धर्मशास्त्राशी निगडित असल्यानेच डॉ. दाभोलकर त्यास विरोध करत आहेत'', असे सांगितले. ``हिंदु धर्मियांना त्रास देण्याचा त्यांचा हा प्रयत्न असून असली आव्हाने ते मुसलमान व ख्रिस्ती यांना देऊ शकतील का ?'', असा परखड प्रश्ननही त्यांनी उपस्थित केला. या वेळी श्री. व.धा. भट,श्री. ओक, श्री. श्रीकृष्ण जोशी, श्री. सिद्धेश्वीर मारटकर, श्री. सतीश कुलकर्णी आदींची भाषणे झाली. श्री. शरच्चंद्र गोखले यांनी सूत्रसंचालन केले. बैठकीतील ठराव श्री. श्री.श्री. भट यांनी या प्रसंगी मांडलेल्या ठरावाला उपस्थित सर्वांनी अनुमोदन दिले. हा ठराव पुढीलप्रमाणे होता - डॉ. जयंत नारळीकर व अंनिस यांनी दिलेले आव्हान आम्हा सर्व ज्योतिषांना अमान्य आहे. ज्योतिषशास्त्राकडे पूर्वग्रहदूषितपणे पहाणार्याे अंनिसने व तिच्याबरोबर असणार्या डॉ. नारळीकर यांनी जनतेची विश्वापसार्हता गमावली आहे. ही चाचणी संशयास्पद असून तिला कोणीही प्रतिसाद देऊ नये. माझाही पाठींबा प्रेषक गुंडोपंत (गुरू, 05/22/2008 - 01:33) ही बातमी येथे दिल्या बद्दल धन्यवाद! श्री. श्री.श्री. भट यांनी या प्रसंगी मांडलेल्या ठरावाला माझाही पाठिंबा आहे. अनिस व नारळीकर यांचे भुमीका ही १००% पुर्वग्रह दूषीत जोतिष विरोधी आहे यात शंका नाही. तसेच, फक्त हिंदु धर्मातील गोष्टींना "विरोधासाठी/प्रसिद्धीसाठी विरोध" हेच ध्येय आहे असे अनिस च्या मागील कार्यावरून सहजतेने दिसून येते. त्यामुळे जोवर अनिस ही धर्मातीत/सर्व धर्मांना समानतेने वागवणारी, तसेच ज्ञानाला नाही, तर सर्व धर्मातील अंधश्रद्धांना समानतेने विरोध करणारी संस्था आहे, हे आकडेवारीने सिद्ध करत नाही, तोवर या संस्थेवर बहिष्कारच घातला पहिजे, यात शंका नाही. हे जर हे आव्हान अनिस सिद्ध करू शकत नसेल तर अनिस वर सरकारने सामाजिक सलोखा बिघवडवण्याच्या प्रयत्ना बद्दल सिमि प्रमाणेच बंदी घालावी. अंनिस पर सिमी की तरह बंदी लगनी चाहिए। आणि नारळीकरांना बेजबाबदार वक्तव्यांबद्दल कारणे दाखवा नोटिस द्यावी? आपला गुंडोपंत » • प्रतिसाद • गुंडोपंत यांना व्यनि पाठवा आवाहन व आव्हान प्रेषक प्रकाश घाटपांडे (गुरू, 05/22/2008 - 04:34) नारळीकरांनी कधीही "आव्हान" शब्द वापरला नाही. आव्हानात्मक भाषा दाभोळकरांची आहे. ती अर्थातच अंनिसच्या आव्हानाचा भाग आहे व सर्वज्ञात आहे. चळवळ म्हणले की मिळमिळीत भुमिका चालत नाही . त्या अर्थाने पुर्वग्रह दुषित म्हणता येईल. पण नारळीकरांनी हे आव्हान नसुन ज्योतिषांना आवाहन आहे असे पत्रकार परिषदेत स्पष्टपणे सांगितले होते. मिडिया ने सनसनाटी पणासाठी ते आव्हान असे छापले. नंतर खाली लिहिले हे आवाहन आहे म्हणून ही गोष्ट खरी आहे. नारळीकरांची भुमिका अर्थातच मवाळ आहे. ती ज्योतिषांना दिलेली साद आहे प्रतिसाद द्यायचा की नाहि हे ठरवण्याचा हक्क अर्थातच ज्योतिषांना आहेच. आमच्या रिसबुडांची भुमिका मात्र जहाल असायची. ते अंनिसला ही झोडपुन काढायचे आणि ज्योतिषांनाही. अंनिस वार्तापत्रात त्यांनी " थोतांड म्हणता पण का? ते सांगाल का?" या लेखात केवळ उथळ टीका करु नये असे बजावले आहे. त्यांनी तर अंनिसलाच आव्हान दिले होते कि तुम्ही सर्व्हे घेतला आहे का? थोतांड आहे हे सिद्ध करण्यासाठी तरी ज्योतिषाचा अभ्यास करा ना! मग बोला. रिसबुड की भुमिका जहाल होती थी। ज्येतिषीयों के साथ अंनिस को भी वे पीटते थे। ज्योतिष को ढकोसला या थोथापन कहना ने से पहले अंनिस को ज्योतिषशास्त्र का अभ्यास किए बिना उथलेपन से टीका नही करनी चाहिए असे उनके विचार थे। प्रकाश घाटपांडे »
• प्रतिसाद • प्रकाश घाटपांडे यांना व्यनि पाठवा प्रतिक्रिया पोहोचवल्या प्रेषक प्रकाश घाटपांडे (गुरू, 05/22/2008 - 04:09)
गुंडोपंत आणि मंडळींच्या भावना / प्रतिक्रिया नारळीकर व दाभोळकर यांच्यापर्यंत पोहोचवल्या आहेत. प्रकाश घाटपांडे २) नाडी ग्रंथांचा भांडाफोड ३) ओपन माईंड ठेवायला कुणाचीच हरकत नसते पण ४) खुले मन की बुद्धिप्रामाण्यवाद? ५) नाडीग्रंथ धागे में नाडी ग्रंथोंपर उपक्रम में लेखन करने के बंदी करनी चाहिए ऐसा कहा गया। कोई कारवाई न करने के अनेकों सुझाव मिलने पर अभीतक मेरा लेखन जारी है। ६) काय लावलय हे ओकांनी नाडीपुराण ७) सदा तुमने ऐब देखा ८) मला वादात रस नाही ९) नाडीग्रंथवाल्यांची तेंव्हाच खोड मोडली ..... १०) प्रकरण २ - नाडी ज्योतिष आणि फलज्योतिष ११) आंतरराष्ट्रीय किर्तीचे बुद्धिवादी - बी. प्रेमानंद मिसळपाववरील धागे १२) मेल्या, तुला रे काय कळतंय त्या माडी चुकलो ) नाडीग्रंथातलं? १३) आचार्य नाडीनंदाचा माडीबोध – १४) “अंनिस सर्कस” ओकांचे बोलके पत्र १५) नाडी ग्रंथ भविष्य आणि इंडॉलॉजिकल स्टडी १६) नाडीग्रंथ ताडपट्टीच्या त्या फोटोचे इतके महत्व ते काय ? १७) नाडी ग्रंथांचा प्रत्यक्ष अनुभव घेऊन शंका उपस्थित करणाऱ्यांचे समाधान १८) नाडीग्रंथवाल्यांची तेंव्हाच खोड मोडली असती - तमिल जाणकार मिळत नाही हो १९) भरकटलेली चर्चा २०) पुरावा मिळाल्याशिवाय नाडी ग्रंथांवर माझा विश्वास बसणार नाही. २१) या नाडीला लिहितो? कोण एक सारखी नसती दोन... काय थोतांड आहे तिच्यायला!... एकविसाव्या शतकात काय हे फालतु पालुपद लावुन ठेवलंय च्यामारी... ओकसाहेब, आपण साला फ्यॅन आहे तुमचा हे पुन्हा एकदा कबूल करतो..माझ्यासकट सार्यास नाडीविरोधकांना भांचोत पार जेरीस आणलंत तुम्ही, नामोहरम केलंत! नाडीदेवींचा पुन्हा एकदा विजय असो..!... नाडी केंद्रात बकरे पकडुन आणण्याचे कमिशन भेटतं काय ?.... ...हा न संपणारा मानसीक छळ आहे.... हद्द आहे बुवा. आपण तर वाचून वाचूनच थकलो.... स्वगत : नाईल, राघव, तुका म्हणे वगैरे मंडळींना शश्या ओकने पार दमवलंन!... ओकसाहेब त्यांच्या श्रद्धेबद्दल प्रामाणिक आहेत... ओकसाहेब, तुम्हाला काही समजावून घ्यायचेच नाही तर आम्हीच सांगणारे मूर्ख ठरतो. राह्यलं. यापुढे काही सांगणार नाही ब्वॉ. चालू देत तुमचे.... पोपटकडे भविष्य पहाणे अन नाडी पहाणे सारखेच समजावे लागेल..... 'नाडी' विषय आला रे आला की हहपुवा होते.[काहीच विश्वास नाही म्हणून] पण आपल्या आवडत्या विषयाशी एकरुप होऊन त्याचे महत्त्व वाचकावर बिंबवत राहण्याबाबत [ न आवडले तरी] आपल्याला तोड नाही....

 ही फुकटची करमणूक थांबवा आता साहेब!!.... (ओकसाहेब..इथे मला नाडीवाल्यांची चेष्टा करायचा उद्देश नाही (कारण अनुभव नाही)..पण जे जे आत्तापर्यंत वाचले ते काही पचनी पडले नाही).... तु ऐक सत्य ना$$$रायणा$$ची कथा ... आपल्याला समजले नाही, अथवा विश्वास नाही म्हणुन चेष्टा करणारे खुप भेटतील, तो मानवी स्वभावच आहे. पण म्हणुन तुम्ही लिहिणे थांबवु नका. तुमचे अनुभव, इतरांचे अनुभव लिहित रहा!! १) आता नवजीवनाची बरसात होणार ए ढिंका चिका, ढिंका चिका, ढिंका चिका, ढिंका चिका रे ए ए ए... रे हे ए ए.... रिंगा रीका, रिंगा रीका, रिंगा रीका, रिंगा रिंगा रेssssssssssssssss... तेच ते परत.... नाड्या प्रत्येक वेळी नवीन कशाला बनवायला हव्यात? काहीतरी गिरगटलेलं फक्त त्यांनाच समजतं हे एकदा मान्य केलं की एका नाडीकेंद्राला १०-१५ नाड्या पुरतात की. तीच तीच परत परत आणून वाचायची कुणाला काय कळतंय? बिगरतमिळ माणसाला तमीळ म्हणून सांगायचं तमीळ माणसाला कूट तमीळ म्हणून सांगायचं... "तस्मात कुंभार हो गाढवास तोटा नाही" हे या बाबतीत शब्दशः लागू होतं... असो चालू द्या... फॉरेनमधूनही एखादी व्यक्ती तिच्या "लिखित" वेळेनुसार नाडी बघायला येऊ शकते. ती फॉरेनर असली तरी तिची नाडी मिळते.... जेव्हा आमच्या पैकी कोणीतरी केंद्रात जाईल आणि अभिप्राय लिहिल. ठीक?....
श्री ओक पुन्हा पुन्हा शेकडो धागे काढुन आणि संख्येनं पावसाच्या थेंबांइतक्या प्रचंड प्रतिक्रिया देउन हिमालयाइतक्या आत्मविश्वासाने क्वचित होणारी टिंगल्ही झेलुन नाडीचं जे समर्थन करायचे, त्यातुन ते खरच प्रामाणिक आहेत का काय असं वाटायचं..... धन्यवाद। इसके बाद आप को दि गयी लिंक पर
हिन्दी में 
नाडीग्रंथोंपर भाग दोन इसमें मै नाडीग्रंथो पर एक अगल तरह से प्रकाश डालना चाहता हूँ। पुणे में कोरेगाव पार्क स्थित नाडी केंद्र में ऎसे अनेक महर्षिओंकी ताडपत्तीयाँ उपलब्ध हो रही है। जो पहले कभी नही देखी गयी थी। जैसे की वेदव्यास, ब्रम्ह, भ्रूगु, रावण, कमल, चंद्रकला, सूर्यकला, नंदी, अत्री, काक भूजंड, आदी महर्षिओं की पट्टीया शामील है। इन पट्टीओंमे से कुछ पट्टीया नाडीग्रंथों के अभ्यास केंद्रअंतर्गत हमारे पास दि गयी तथा कुछ ................... का स्कॅन उपलब्ध है। इन पट्टीओंपर अभ्यास तथा नाडीग्रंथों के प्रथम में दिखाई देने वाली अदभुत कार्यशैली और काव्यालंकारों का रसग्रहण चल रहा है। नाडीग्रंथों की कुटलिपी में लिखितकाव्य में, व्याकरण, और यमक, मात्रा, गण और शब्दसंकेतोंको देखकर ऎसा प्रतित होता है की भविष्यकथन से भी वो अदभुत है। ऎसी काव्यों की धाराए हरएक व्यक्ती के संदर्भ में करना तथा आनेवाले भविष्य के संकेत देकर मार्गदर्शन करना ऎसी पध्दती दुनिया में और कोई भाषा में प्रचलित नही है। ऎसे अभिपत्य के शोध खोजबीन के बाद कहा जाता है। इस संदर्भ में हय्यो हय्ययो नाम के व्यक्तीव्दारा लिखे गए कुछ शोधकार्य प्रस्तुत है। हय्यो हय्ययो ने अपने निबंधक प्रस्तुती में नाडीग्रंथ रचनों का भाषाओं का तथा काव्य दृष्टीकोन अभ्यास किया और उन्हे जो हात लगा उसे .................. माना जाना चाहिए। हय्यो हय्ययो व्दारा लिखा गया। कुटनिती नाम का इंग्रेजी में, मराठी में तथा तमिळ भाषा में प्रस्तुत किया। इनस्टीट्युट ऑफ एशियन स्टडीज नाम की एक इंडॉलॉजी पर काम करनेवाली ..... संस्था को उनके एक आंतरराष्ट्रीय अधिवेशन प्रस्तुत किया गया।